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लेखनी कहानी -17-Oct-2022 गोबर्धन व अन्नकूट पूजा(भाग 6)


      शीर्षक: गोबर्धन  व अनन्कूट पूजा
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     सौनू की दादी उसे समझाते हुए आगे की पूजा के विषय में बताने लगी। वह बोली  ,"सौनू बेटा दीपावली के दूसरे दिन अर्थात  प्रतिपदा को सभी जगह गोबर्धन पूजा होती है। "

  सौनू  पूछते हुए बोला," दादी यह गोबर्धन पूजा क्या होती है और यह क्यौ की जाती है। इसका क्या कारण है।"
। तब उसकी दादी उसे यह कथा विसातार से बताने लगी जो इस प्रकार है:-


          कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को गोवर्धन पूजन किया जाता है। विशेषतौर पर मनुष्यों के द्वारा प्रकृति के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए गोवर्धन का यह पर्व मनाया जाता है। 

                 इस दिन गिरिराज यानी गोवर्धन व भगवान कृष्ण के पूजन का विधान है। इस दिन को अन्नकूट पूजा भी कहा जाता है, क्योंकि इस दिन अन्नकूट का भोग लगाने की परंपरा है। इस दिन घर के आंगन में गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत और पशुधन की आकृति बनाई जाती है व विधि-विधान के साथ पूजन किया जाता है। गोवर्धन पूजन की कथा द्वापर युग से जुड़ी हुई है। जब भगवान कृष्ण ने देवराज इंद्र का अंहकार दूर करने के लिए लीला रची थी। तभी से गोवर्धन पूजन की परंपरा आरंभ हुई। तो चलिए जानते हैं गोवर्धन पूजन करने के पीछे की कथा।


                 एक बार इंद्रदेव को अभिमान हो गया, तब लीलाधारी श्री कृष्ण ने एक लीला रची। एक दिन श्री कृष्ण ने देखा कि सभी ब्रजवासी तरह-तरह के पकवान बना रहे हैं पूजा का मंडप सजाया जा रहा है और सभी लोग प्रातःकाल से ही पूजन की सामाग्री एकत्रित करने में व्यस्त हैं। तब श्री कृष्ण ने योशदा जी से पूछा, ''मईया'' ये आज सभी लोग किसके पूजन की तैयारी कर रहे हैं, इस पर मईया यशोदा ने कहा कि पुत्र सभी ब्रजवासी इंद्र देव के पूजन की तैयारी कर रहे हैं।  तब कन्हैया ने कहा, कि सभी लोग इंद्रदेव की पूजा क्यों कर रहे हैं, तो माता यशोदा उन्हें बताते हुए कहती हैं, क्योंकि इंद्रदेव वर्षा करते हैं और जिससे अन्न की पैदावार अच्छी होती है और हमारी गायों को चारा प्राप्त होता है। 
 

              तब श्री कृष्ण ने कहा कि वर्षा करना तो इंद्रदेव का कर्तव्य है। यदि पूजा करनी है तो हमें गोवर्धन पर्वत की करनी चाहिए, क्योंकि हमारी गायें तो वहीं चरती हैं और हमें फल-फूल, सब्जियां आदि भी गोवर्धन पर्वत से प्राप्त होती हैं। इसके बाद सभी ब्रजवासी इंद्रदेव की बजाए गोवर्धन पर्वत की पूजा करने लगे। इस बात को देवराज इंद्र ने अपना अपमान समझा और क्रोध में आकर प्रलयदायक मूसलाधार बारिश शुरू कर दी। जिससे हर ओर त्राहि-त्राहि होने लगी। सभी अपने परिवार और पशुओं को बचाने के लिए इधर-उधर भागने लगे। तब ब्रजवासी कहने लगे कि यह सब कृष्णा की बात मानने का कारण हुआ है, अब हमें इंद्रदेव का कोप सहना पड़ेगा। 

                भगवान कृष्ण ने इंद्रदेव का अंहकार दूर करने और सभी ब्रजवासियों की रक्षा करने हेतु गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगली पर उठा लिया। तब सभी ब्रजवासियों ने गोवर्धन पर्वत के नीचे शरण ली। इसके बाद इंद्रदेव को अपनी भूल का अहसास हुआ और उन्होंने श्री कृष्ण से क्षमा याचना की। इसी के बाद से गोवर्धन पर्वत के पूजन की प्रथा चल पडी़ हम सभी आज तक यह पूजा करते आरहे है।

    कहीं कहीं उस दिन विश्वकर्मादिवस भी मनाते है  जितने भी इन्जीनियर व मिस्त्री उस दिन अपने औजारौ की व मशीनरी की पूजा करते है।

  30 Days Festival Competition   के लिए रचना।

नरेश शर्मा  " पचौरी "

22/10/2022

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6 Comments

Khan

25-Oct-2022 07:41 PM

Very nice 👍🌺

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Mahendra Bhatt

23-Oct-2022 04:17 PM

बहुत ही सुन्दर

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Supriya Pathak

22-Oct-2022 08:43 PM

Bahut khoob 🙏🌺

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